*मध्य प्रदेश के ग्रामीण अंचल में शिक्षा की बदहाल स्थिति, प्रशासन की लापरवाही से खतरे में बच्चों की जान*
केवलारी, मध्य प्रदेश* | 29 जुलाई 2025
मध्य प्रदेश सरकार शिक्षा को बढ़ावा देने और छात्र-छात्राओं को बेहतर सुविधाएं देने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है। जनपद पंचायत केवलारी के अंतिम छोर पर बसे ग्राम पंचायत नसीपुर के कुनबीटोला में स्थित शासकीय माध्यमिक शाला इसका जीता-जागता उदाहरण है। यहां का स्कूल भवन इतना जर्जर हो चुका है कि कक्षा का लैटर (छत का बीम) बिल्लियों के सहारे टिका हुआ है। इस खतरनाक स्थिति में 70 बच्चे रोज अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं।
बिल्लियों के सहारे टिकी छत, मंडराता हादसे का खतरा
कुनबीटोला के शासकीय माध्यमिक शाला का भवन पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। दीवारों में दरारें, छत से टपकता पानी, और कमजोर बीम इस स्कूल को एक टाइम बम की तरह बनाते हैं। लगातार हो रही बारिश ने स्थिति को और खतरनाक कर दिया है। ग्रामीणों ने अपनी ओर से छत और बीम को बिल्लियों (लकड़ी के खंभों) के सहारे टिकाने की कोशिश की है, ताकि कोई बड़ा हादसा टाला जा सके। लेकिन यह अस्थायी उपाय कितने दिन काम करेगा, यह सवाल सभी के मन में है।
राजस्थान की त्रासदी से भी नहीं लिया सबक
पिछले दिनों राजस्थान में एक स्कूल की इमारत ढहने से सात बच्चों की दबकर मृत्यु हो गई थी। इस दुखद घटना ने पूरे देश का ध्यान स्कूलों की जर्जर इमारतों की ओर खींचा, लेकिन कुनबीटोला में जिला प्रशासन अब भी उदासीन बना हुआ है। शिक्षकों और स्कूल के संकुल प्राचार्य ने कई बार जर्जर भवन की स्थिति की सूचना जिला प्रशासन को दी और मरम्मत के लिए प्रस्ताव भेजा, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। क्या प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है?
2005 का भवन, 2025 में जर्जर
कुनबीटोला में शासकीय माध्यमिक शाला की स्थापना सन 2001 में हुई थी, और इसका भवन 2005 में बनकर तैयार हुआ था। मात्र 20 सालों में यह भवन इतना जर्जर हो चुका है कि अब यह बच्चों के लिए खतरा बन गया है। स्कूल में पढ़ने वाले 70 छात्र-छात्राएं न केवल खराब सुविधाओं का सामना कर रहे हैं, बल्कि हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ाई कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बेहतर शिक्षा के लिए बेहतर भवन जरूरी है, लेकिन उनकी आवाज प्रशासन तक नहीं पहुंच रही।
प्रशासन की लापरवाही, बच्चों का भविष्य दांव पर
शिक्षकों ने बताया कि जर्जर भवन की स्थिति को लेकर बार-बार जिला प्रशासन को सूचित किया गया है। प्रस्ताव और शिकायतें कार्यालय से लेकर जिला मुख्यालय तक पहुंचाई गई हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। ग्रामीणों और शिक्षकों का डर जायज है—लगातार बारिश और कमजोर भवन की स्थिति को देखते हुए कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। सवाल यह है कि क्या मध्य प्रदेश शासन और जिला प्रशासन इन 70 मासूम बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगा?
आखिर कब जागेगा प्रशासन?
कुनबीटोला का यह स्कूल मध्य प्रदेश के उन सैकड़ों ग्रामीण स्कूलों की तस्वीर पेश करता है, जो आज भी जर्जर भवनों में चल रहे हैं। सरकार के शिक्षा पर करोड़ों रुपये खर्च करने के दावों के बीच इन स्कूलों की हालत सुधारने की जरूरत है। बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए तत्काल कार्रवाई जरूरी है। क्या प्रशासन समय रहते जागेगा, या फिर एक और त्रासदी का इंतजार करेगा?