दुगली ( धमतरी) , 15 जनवरी। नगरी-सिहावा में आदिवासियों के भूमि अधिकार को लेकर जो आन्दोलन सन् 1952 में डा. राममनोहर लोहिया की पहल से शुरू हुआ था उसे पूरी तरह सफल होने में तेहत्तर साल लग लग गये। देश में वन अधिकार अधिनियम इसी आंदोलन की देन है। वनग्रामों को राजस्व ग्राम जैसी सुविधाएं देने की शुरुआत 1990 के दशक में यहीं से हुई जिसका लाभ देश के लाखों आदिवासी गांवों को मिलना शुरू हुआ। वनग्रामों का पहला घोषणा पत्र तो इसी आन्दोलन की देन है ही, चारों ओर नक्सली हिंसा से घिरा यह क्षेत्र अहिंसा का टापू भी है। यहां के आदिवासियों ने अहिंसक संघर्ष के जरिए जिस धैर्य और संयम का परिचय दिया है उसे देश के पाठ्यक्रमों में स्थान मिलना चाहिए। सुप्रसिद्ध सोशलिस्ट, गांधीवादी चिंतक व लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक – संरक्षक रघु ठाकुर ने दुगली विकासखण्ड के कौहाबहरा में आयोजित सभा में यह विचार व्यक्त किये। (Ngari-Sihawa Movement)
स्मृति -फलक का हुआ विमोचन
सभा से पहले ठाकुर ने वहां पहुंचकर स्मृति -फलक का विमोचन किया जिसमें इस संघर्ष के साथियों के नाम अंकित किये गये हैं। कौहाबहरा के सरपंच व लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष शिव नेताम की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में पार्टी की छत्तीसगढ़ इकाई के महासचिव श्याम मनोहर सिंह व पत्रकार जयन्त सिंह तोमर उपस्थित थे। इस दौरान रघु ठाकुर ने कहा कि भारत में दो ही आंदोलन सबसे लंबे चले। एक सीमांत गांधी का , दूसरा डॉ लोहिया का नगरी-सिहावा आंदोलन। (Ngari-Sihawa Movement)
Liquor Scam Case : कोर्ट में पेश हुए कवासी लखमा, मेडिकल कराने के बाद न्यायालय लेकर पहुंची ED
18 गांव के आदिवासियों को मिला भूमि का अधिकार
उल्लेखनीय है कि डॉ लोहिया के बाद सन् 1977 से नगरी सिहावा के आंदोलन की बागडोर रघु ठाकुर ने सम्हाली, जिसके तहत अठारह में से तेरह गांवों के आदिवासियों को तो 1990 के दशक में भूमि का अधिकार मिल गया था। लेकिन, पांच गांवों का प्रकरण उलझ गया था जिन्हें अब जाकर सफलता मिली है। अपने अधिकारों के लिए इस अंचल की पांच पीढ़ियों ने निरंतर संघर्ष किया, रायपुर तक 120 किमी की पदयात्रा की, रघु जी ने अनशन किया, आदिवासियों ने जेल भरी, जार्ज फर्नांडीज व शरद यादव आदि नेताओं ने सांसद रहते हुए समर्थन में गिरफ्तारी दी।
रघु ठाकुर ने कहा कि इस आंदोलन में पत्रकार मधुकर खेर, गोविन्दलाल वोरा, तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा व पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का समर्थन व सहयोग रहा। सबके प्रति इस आंदोलन से जुड़े लोग कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। लोहियावादियों का सबके प्रति सकारात्मक भाव रहता है, किसी से शत्रुता नहीं होती। उन्होंने कहा कि नगरी- सिहावा आंदोलन की सफलता ने आदिवासियों के मन में अधिकारों को हासिल करने की भूख जगाई है, चाहे वह चिकित्सा का मौलिक अधिकार हो या गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का।
डॉ लोहिया कहते थे कि सड़कें सूनी हो जायेंगी तो संसद आवारा हो जायेगी। इसीलिए यहां के आदिवासी अपने आगामी कार्यक्रम के तहत फसल कटने के बाद अपने अधिकारों के लिए फिर राजधानी की ओर कूच करेंगे। रघु ठाकुर ने कहा नगरी- सिहावा आंदोलन के जरिए पांच सफलताएं निश्चित हुईं। अठारह गांवों के कब्जे वाली जमीन की जांच हुई, 1985 से पहले के कब्जों को पट्टे मिलना तय हुआ, जो पात्र नहीं थे उन्हें खेती की जमीन जीवनयापन के लिए मिली , आदिवासियों की टूटी झोपड़ियों की सरकार द्वारा मरम्मत का सामान मिला। लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी को हर तरह की गैर-बराबरी, अन्याय व भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखना है।
लोसपा छत्तीसगढ़ इकाई के महामंत्री श्याम मनोहर सिंह ने कहा इतने लम्बे आन्दोलन को अहिंसक ढंग से चलाने में रघु ठाकुर जी की भूमिका सर्वोपरि है।जयन्त सिंह तोमर ने कहा कि इस ऐतिहासिक आन्दोलन पर एक डॉक्यूमेंट्री बननी चाहिए। उमरादेहान के स्मृति- फलक में सुखराम नागे, बिसाहिन बाई, समरीन बाई, रामप्रसाद नेताम, रमेश वल्यानी व एच वी नारवानी एडवोकेट आदि का विशेष उल्लेख किया गया है।