Aadi Vaani AI Translation Tool: “आदि वाणी” आदिवासी भाषाओं को बचाने वाला भारत का पहला एआई ट्रांसलेटर

Aadi Vaani AI Translation Tool: भारत में 461 आदिवासी भाषाएं और 71 मातृभाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से कई तेजी से विलुप्त हो रही हैं। ये भाषाएं न केवल बात-चीत का माध्यम हैं, बल्कि इनमें आदिवासी समुदायों का सांस्कृतिक और पारंपरिक ज्ञान भी समाहित होता है।

ऐसे में “आदि वाणी” जैसी तकनीकी पहल न केवल भाषाओं को बचाने में मदद करती है, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक समावेश को भी बढ़ावा देती है।

क्या है आदि वाणी?

“आदि वाणी” भारत का पहला एआई-आधारित अनुवाद उपकरण है जिसे विशेष रूप से आदिवासी भाषाओं के लिए विकसित किया गया है।

यह हिंदी और अंग्रेज़ी के साथ रियल-टाइम में प्रमुख आदिवासी भाषाओं में अनुवाद करने की क्षमता रखता है। इसका विकास केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय के नेतृत्व में किया गया है।

इन भाषाओं को करता है सपोर्ट?

शुरुआती चरण में आदि वाणी इन चार भाषाओं को सपोर्ट करता है:

  • संताली (ओडिशा)

  • भीली (मध्य प्रदेश)

  • मुंडारी (झारखंड)

  • गोंडी (छत्तीसगढ़)

आगामी चरणों में बेगा, कोरकू, कुई, और गारो जैसी अन्य भाषाओं को भी जोड़े जाने की योजना है।

कैसे करता है काम?

आदि वाणी एआई तकनीक का उपयोग कर तीन प्रमुख सुविधाएं प्रदान करता है:

स्पीच-टू-टेक्स्ट ट्रांसलेशन

आदिवासी भाषा में बोले गए शब्दों को हिंदी या अंग्रेजी टेक्स्ट में बदलना।

टेक्स्ट-टू-स्पीच ट्रांसलेशन

हिंदी या अंग्रेजी टेक्स्ट को आदिवासी भाषा में आवाज़ के रूप में सुनना।

ओसीआर आधारित ट्रांसलेशन

किसी भी स्कैन किए गए दस्तावेज़ या चित्र में लिखी भाषा को पहचानकर उसका अनुवाद करना।

साथ ही, इसमें भाषा शिक्षण मॉड्यूल, लोककथाओं का संग्रह, और संस्कृतिक सामग्री का डिजिटलीकरण भी शामिल है।

किन संस्थानों ने मिलकर किया निर्माण?

इस परियोजना का नेतृत्व आईआईटी दिल्ली ने किया है, जिसमें भागीदार संस्थान हैं:

  • बिट्स पिलानी

  • आईआईआईटी हैदराबाद

  • आईआईआईटी नवा रायपुर

  • विभिन्न राज्यों के जनजातीय अनुसंधान संस्थान (T.R.I)

मध्य प्रदेश के टीआरआई ने खासतौर पर भीली और गोंडी भाषाओं के लिए विशेष डेटा और समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित की।

मध्य प्रदेश में इसका क्या असर होगा?

मध्य प्रदेश में भारत की सबसे बड़ी आदिवासी आबादी रहती है। भीली और गोंडी जैसी भाषाओं के डिजिटल रूप से सक्षम होने से:

  • शिक्षा में मातृभाषा का प्रयोग बढ़ेगा

  • स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ होंगी

  • सरकारी योजनाएं अधिक प्रभावी तरीके से लोगों तक पहुंच सकेंगी

  • आदिवासी समुदायों का सशक्तिकरण होगा

कब और कहां होगा लॉन्च?

  • बीटा संस्करण: 1 सितंबर 2025

  • प्लेटफॉर्म: Google Play Store (मुफ्त डाउनलोड)

  • iOS वर्जन: जल्द ही उपलब्ध होगा

यह ऐप मोबाइल फ्रेंडली होगा, जिससे दुर्गम क्षेत्रों में भी इसका उपयोग आसानी से किया जा सकेगा।

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