एंटी टेरेरिस्ट स्क्वायड (एटीएस) ने जबलपुर से एक अफगानिस्तान नागरिक को गिरफ्तार किया है। पकड़ा गया आरोपी सोहबत खान लगभग 10 वर्ष से जबलपुर के छोटी ओमती में रह रहा था। जबलपुर से अपना अधारकार्ड और भारतीय पासपोर्ट तक बनवा लिया था। आधार हासिल करने के लिए गए फर्जीवाड़े में वन विभाग का एक कर्मचारी दिनेश गर्ग भी शामिल बताया गया है… मामले में आरोपी दिनेश के साथ ही कटंगा निवासी महेंद्र कुमार सुखदन को अफगानिस्तानी युवक को अवैध तरीके से अभिलेख बनवाने में सहयोग करने पर गिरफ्तार किया गया है। प्रारंभिक जांच में पता चला है कि सोहबत ने दिनेश और महेंद्र से मिलकर लगभग 10 अफगानिस्तानी युवकों के जबलपुर के पते पर आधार एवं पासपोर्ट बनवाए हैं जो बंगाल, बिहार एवं झारखंड में रह रहे है। जिसमें दो अफगानिस्तानी नागरिक की पहचान अकबर और इकबाल के रूप में की गई है। दोनों के पहचान पत्र जबलपुर के फर्जी पते है। वर्तमान में दोनों बंगाल में रह रहे है। सोहबत ने कुछ समय पूर्व इंटरनेट मीडिया पर एक फोटो अपलोड की ।
इस फोटो में वह अपने हाथ में विदेशी हथियार पकड़े हुए थे। यह पोस्ट एटीएस की संज्ञान में आ गई। एटीएस ने सोहबत की जानकारी जुटाने के साथ ही उसकी गतिविधि पर गुपचुप निगरानी शुरू कर दिया। इस दौरान सोहबत के अफगानिस्तान आने-जाने की भनक लगी। छानबीन की गई तो उसका अफगानिस्तान जाने का पासपोर्ट फर्जी पाया गया। आरोपित सोहबत इतना शातिर था कि अफगानिस्तान से भारत में आने के तुरंत बाद उसने अपना मूल पासपोर्ट को टुकड़े-टुकड़े करके फेंक दिया। ताकि उसके पास अफगानिस्तान की कोई पहचान न रहे। वह जिस योजनाबद्ध तरीके से अन्य अफगानिस्तानी युवकों को फर्जी तरीके से भारतीय नागरिक बना रहा था, उससे चलते आरोपित के आंतकी कनेक्शन को भी एटीएस खंगाल रही है।एटीएस को जांच में पता चला है कि आरोूपी सोहबत खान वर्ष 2015 में भारत पहुंचा। उसकी भोपाल में रह रही एक अफगानिस्तानी शरणार्थी युवती से पहचान थी। वह भारत पहुंचने के बाद उस युवती से मिला। उसके साथ विवाह किया और दोनों रहने के लिए जबलपुर पहुंच गए। जहां, सोहबत ने जाली जन्म प्रमाण पत्र के माध्यम से आधार कार्ड बनवाया। कलेक्ट्रेट के कर्मचारियों से मिलीभगत कर जबलपुर का मूल निवासी प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया। उसका पेन कार्ड से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस भी बन गया। वर्ष 2020 में उसने भारतीय पासपोर्ट भी हासिल कर लिया। स्वयं को भारतीय नागरिक साबित करने के बाद उसने अपने दो साथियों का भी जबलपुर के फर्जी पते से आधारकार्ड तैयार करा दिया। सोहबत जबलपुर आने के बाद स्थानीय पहचान पत्र बनवाने के लिए घूम रहा था। तभी वह तब कलेक्ट्रेट के चुनावी सेल में सेवा दे रहे वन कर्मी दिनेश गर्ग के संपर्क में आया। कलेक्ट्रेट में आते-जाते दिनेश की प्रमाण पत्र तैयार करने वाले कर्मचारियों से जान-पहचान हो गई थी। सोहबत ने 10 लाख रुपये में अपना और अपने अन्य साथियों का आधार कार्ड बनवाने का सौदा किया। दिनेश ने संबंधित विभागों के कर्मियों से सोहबत और उसके साथियों के जबलपुर के फर्जी पते पर आधार कार्ड बनवाया। फिर पासपोर्ट सेवा केंद्र में पूर्व में काम करने वाले महेंद्र से संपर्क साधा। पहचान के दस्तोवज बनने के बाद महेंद्र से मिलकर पासपोर्ट बनवाया। चूंकि सब कुछ फर्जी पते पर थे इसलिए डाकिए को भी मिला लिया। जब आधार, पासपोर्ट आता तो वह डाकिए को तीन हजार रुपये देकर रास्ते से ही उसे अभिलेख ले लेते थे। ताकि कोई उनका फर्जीवाड़ा पकड़ न सकें। एटीएस को प्रारंभिक जांच में पता चला है कि जबलपुर से अफगानिस्तानी नागरिकों के फर्जी पहचान बनाने का काम संगठित रूप से चल रहा था। इस गिरोह से प्रमाण पत्र तैयार करने वाले से लेकर सत्यापन के जिम्मेदार तक सम्मिलित थे। विदेशी नागरिकों के पासपोर्ट के लिए पुलिस सत्यापन की प्रक्रिया भी सवालों के घेरे में है। हर स्तर पर गिरोह के सदस्यों को फर्जीवाड़े के लिए निर्धारित राशि मिलती थी। साहेबत के फर्जी भारतीय अभिलेख बनाने के साथ ही उसके दो साथियों के पासपोर्ट लगभग तैयार कर लिए गए थे। एटीएस अब गिरोह से जुड़े हर सदस्य की जानकारी जुटा रही है। 20 अन्य अफगानिस्तानी युवक जो भारत के अलग-अलग राज्यों में रह रहे है, उनके बारे में भी पता लगाया जा रहा है।
प्रतीक मोहन अवस्थी बीएसटीवी जबलपुर