पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे को ED ने किया गिरफ्तार, 5 दिन की रिमांड पर

 


पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे को ED ने किया गिरफ्तार, 5 दिन की रिमांड पर

छत्तीसगढ़ में शुक्रवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शराब घोटाले से जुड़े मामले में छापेमारी की। इस दौरान केंद्रीय एजेंसी ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके बेटे चैतन्य बघेल से जुड़े ठिकानों पर रेड की। इसके बाद ईडी ने चैतन्य को गिरफ्तार कर लिया। प्रवर्तन निदेशालय को कोर्ट से 5 दिन की रिमांड मिली है। छत्तीसगढ़ में 2018 में कांग्रेस ने चुनाव जीता और भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने। बताया जाता है कि शराब घोटाले की शुरुआत अगले ही साल 2019 में हो गई। इससे 2022 तक छत्तीसगढ़ में शराब के जरिए काली कमाई की गई। प्रवर्तन निदेशालय का कहना है कि यह सब भूपेश बघेल सरकार की नाक के नीचे हुआ।

मामले का नोएडा से क्या जुड़ाव?
ईडी का कहना है कि घोटाले में कथित तौर पर संलिप्त लोगों ने नकली होलोग्राम को बनाने के लिए उत्तर प्रदेश के नोएडा में होलोग्राफी का काम करने वाली प्रिज्म होलोग्राफी सिक्योरिटी फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को टेंडर दिया था। यह कंपनी होलोग्राम बनाने के लिए पात्र नहीं थी, फिर भी नियमों में संशोधन करके यह टेंडर कंपनी को दे दिया गया था। एक और खुलासा यह हुआ कि यह कंपनी छत्तीसगढ़ के ही एक नौकरशाह से जुड़ी थी।
क्या था संचालन का तरीका?
2017 में छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री रमन सिंह की सरकार ने एक नई आबकारी नीति का एलान किया था। इसके तहत छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड (सीएसएमसीएल) की स्थापना की गई। इस संस्थान को शराब उत्पादकों से शराब खरीदने और अपने स्टोर्स के जरिए बेचने का काम दिया गया। छत्तीसगढ़ सरकार इस योजना के जरिए शराब बिक्री का पूरा रिकॉर्ड केंद्रीकृत करना चाहती थी। ईडी का कहना है कि रमन सिंह सरकार की योजना साफ थी। लेकिन जब 2018 में छत्तीसगढ़ में सरकार बदली तो सीएसएमसीएल का प्रबंधन भी बदल दिया गया। इस तरह शराब सिंडिकेट ने इस पर कब्जा जमा लिया और एक समानांतर आबकारी विभाग शुरू कर दिया। इस सिंडिकेट में राज्य के वरिष्ठ नौकरशाहों से लेकर नेता और आबकारी विभाग के अधिकारी शामिल हो गए।
तीन साल तक कैसे हुआ शराब घोटाले का ‘खेला’?
फरवरी 2019 में भारतीय दूरसंचार सेवा (आईटीएस) के अफसर अरुण पति त्रिपाठी को सीएसएमसीएल का प्रमुख बनाया गया।
मई 2019 में उन्होंने निगम में प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी संभाली। ईडी के मुताबिक, इसके बाद से सरकारी वेंड्स से शराब की अवैध बिक्री शुरू हुई।
अवैध बिक्री में मदद के लिए अफसरों ने उस कंपनी को ही बदल दिया, जो शराब की बोतलों में लगने वाले होलोग्राम, यानी इसके असली होने का प्रमाण बनाती थी। इसकी जगह एक दूसरी कंपनी को होलोग्राम बनाने का ठेका दे दिया गया। इस कंपनी को असली होलोग्राम बनाने के साथ कुछ नकली होलोग्राम बनाने के लिए भी कहा गया। नकली होलोग्राम को कथित तौर पर सीधे त्रिपाठी को भेज दिया जाता था, जो कि इसे देशी शराब के उत्पादकों को भेजते थे। यह उत्पादक कुछ बोतलों में असली और कुछ में नकली होलोग्राम लगाते थे।
इन डुप्लिकेट होलोग्राम के साथ-साथ डुप्लिकेट बोतलें भी हासिल की गईं। इनमें शराब भरकर राज्य के वेयरहाउस की जगह सीधे ठेकों में पहुंचाया जाने लगा।
ईडी ने इस मामले में कोर्ट को बताया है कि इन कारगुजारियों के चलते छत्तीसगढ़ में अगले तीन साल तक बड़ी मात्रा में शराब को अवैध तरह से सप्लाई किया गया। करीब 40 लाख लीटर शराब सरकारी रिकॉर्ड में नहीं आ पाई। इनकी खरीद-बिक्री का कोई ब्योरा नहीं रखा गया। बल्कि इस घोटाले में डिस्टिलर से लेकर ट्रंसपोर्टर (लाने-ले जाने वाले), होलोग्राम बनाने वाले, बोतल बनाने वाले, आबकारी अधिकारी और नेताओं का हिस्सा तय था।चौंकाने वाली बात यह है कि घोटाले में शामिल लोगों की कमाई का जरिया सिर्फ शराब की अवैध तरह से बिक्री से ही नहीं बना, बल्कि आबकारी अधिकारी उत्पादकों से वैध बिक्री पर भी अवैध कमीशन ले रहे थे।
कैसे खुला घोटाले का राज?
ईडी ने मामले में जब जांच शुरू की तो सामने आया कि छत्तीसगढ़ में शराब की बोतलों पर लगने वाले होलोग्राम का टेंडर कारोबारी विधु गुप्ता की कंपनी ने जीता। हालांकि, यह टेंडर उन्हें अवैध कमीशन से मिला। जब प्रवर्तन निदेशालय ने विधु को गिरफ्तार किया तो उन्होंने मामले में बघेल सरकार की तरफ से सीएसएमसीएल के एमडी बनाए गए अरुणपति त्रिपाठी, रायपुर महापौर के बड़े भाई शराब कारोबारी अनवर ढेबर और अनिल टुटेजा का नाम लिया। जब ईडी ने इन तीनों आरोपियों को गिरफ्तार किया, तो मामले में और भी खुलासे हुए।

इस मामले में अब तक कहां तक पहुंची जांच ?
एसीबी और ईओडब्ल्यू ने ईडी के पत्र के आधार पर जनवरी 2024 में एफआईआर दर्ज की। ईओडब्ल्यू के दर्ज एफआईआर में आईएएस अनिल टुटेजा (कथित घोटाले के दौरान वाणिज्य-उद्योग विभाग के संयुक्त सचिव), अरुणपति त्रिपाठी, कांग्रेस के नेता और रायपुर के मेयर एजाज ढेबर के बड़े भाई, शराब कारोबारी अनवर ढेबर को घोटाले का मास्टरमाइंड बताया है। शराब घोटाला से होने वाली आमदनी का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं तीनों को जाता था। ईडी ने इन तीनों ही आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।
बघेल सरकार के आबकारी मंत्री कवासी लखमा की हुई गिरफ्तारी
ईडी के मुताबिक, गिरफ्तार अरुणपति त्रिपाठी और अरविंद सिंह ने पूछताछ में बताया था कि पूर्व मंत्री कवासी लखमा के पास हर महीने कमीशन जाता था। शराब कार्टल से हर महीने लखमा को 50 लाख रुपए मिलते थे। 50 लाख रुपए के ऊपर भी 1.5 करोड़ रुपए और दिए जाते थे। इस तरह 2 करोड़ रुपए उन्हें हर महीने कमीशन के रूप में मिलते थे। आबकारी विभाग में काम करने वाले अफसरों ने बताया कि वे पैसों का जुगाड़ कर उनको भेजते थे। कन्हैया लाल कुर्रे के जरिए पैसों के बैग तैयार कर सुकमा भेजे जाते थे। कवासी लखमा के बेटे हरीश लखमा के यहां जब सर्चिंग की गई तो ईडी को डिजिटल सबूत मिले थे।इन डिजिटल सबूतों की जांच में सामने आया कि इन कथित घूस के पैसों से लखमा ने कांग्रेस भवन और अपना अलीशान घर बनवाया। 36 महीने में प्रोसीड ऑफ क्राइम 72 करोड़ रुपए का है। ये राशि उनके बेटे हरीश लखना के घर के निर्माण और सुकमा कांग्रेस भवन के निर्माण में लगाई गई है।ईडी के मुताबिक, लखमा से पूछताछ की गई, तो उन्होंने जांच में सहयोग नहीं किया। ऐसे में एजेंसी ने तर्क दिया कि कांग्रेस नेता मामले में सबूतों को नष्ट करने की कोशिश कर सकते हैं। ऐसे में उन्हें गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां उन्हें रिमांड पर भेज दिया।

 

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