Heart attack cases: आज के समय में हार्ट अटैक के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। ये मामले सिर्फ बुजुर्गों ही नहीं, बच्चों और युवाओं में भी देखने को मिल रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी इन मामलों से जुड़ी कई सारी वीडियोज वायरल होती रहती है। भोपाल में हाल ही में एक 28 साल के आईटी इंजीनियर की जिम में एक्सरसाइज के दौरान सीने में दर्द से मौत हो गई। वहीं, खरगोन में दुर्गा पंडाल में गरबा कर रही एक महिला की हार्ट अटैक से मौत हो गई। महिला अपने पति के साथ ओ मेरे ढोलना गाने पर डांस कर रही थी, तभी झांकी के सामने गिरी और दम तोड़ दिया। इन बढ़ते मामलों को देखते हुए डॉक्टर्स का कहना है कि हार्ट अटैक अब सिर्फ बुजुर्गों की बीमारी नहीं है। राजधानी समेत देशभर में 8 से 40 साल के लोग भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। दस साल पहले इस उम्र में हार्ट अटैक की दर 8% थी, जो अब 11% तक पहुंच चुकी है। चलिए, जानते हैं इसके पीछे की वजह क्या है।
फिट दिखने वाले युवाओं को भी क्यों आ रहा हार्ट अटैक?
डॉक्टर्स का कहना है कि हार्ट अटैक का एक बड़ा कारण इंसुलिन रेजिस्टेंस सिंड्रोम है। इसमें शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन को पहचानना बंद कर देती हैं। ऐसे में खून में शुगर सामान्य दिखाई देती है, लेकिन शरीर में इंसुलिन का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। यह धीरे-धीरे धमनियों को नुकसान पहुंचाता है और अचानक हार्ट अटैक की वजह बन सकता है। इसी कारण आजकल जिम जाने वाले और फिट दिखने वाले युवाओं में भी अचानक मौत के मामले सामने आ रहे हैं। कार्डियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की गाइडलाइन कहती है कि 18 साल की उम्र से ही कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर की जांच शुरू कर देनी चाहिए, ताकि बीमारी समय रहते पकड़ में आ सके।
अगर हैं ये बीमारियां, तो हार्ट अटैक का खतरा ज्यादा!
आजकल युवाओं में सडन कार्डियक डेथ (अचानक हार्ट रुकना) के मामले बढ़ रहे हैं। डॉक्टर्स के मुताबिक, खून में क्लॉट बनने से अचानक नस ब्लॉक हो जाती है। अगर समय पर सीपीआर न मिले, तो मौत हो सकती है। पहले हृदय रोग सिर्फ बुजुर्गों की बीमारी मानी जाती थी, लेकिन अब यह युवाओं के लिए भी खतरा बन गया है। इसे एथेरोस्क्लेरोटिक सीवीटी कहा जाता है, जिसमें ब्रेन स्ट्रोक, हार्ट अटैक और पेरिफेरल वैस्कुलर डिजीज शामिल हैं। धीरे-धीरे ब्लॉकेज बढ़े तो एंजाइना (छाती में दर्द) या स्टेनोसिस होता है, लेकिन अचानक क्लॉट पूरी नस रोक दे तो सीधा हार्ट अटैक हो जाता है।
इसके पीछे का सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर मेटाबॉलिक सिंड्रोम है। अगर किसी को डायबिटीज, बीपी, मोटापा और कोलेस्ट्रॉल – ये चारों एक साथ हैं, तो हार्ट अटैक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
बच्चों और युवाओं में खतरे की वजहें
बच्चों में: कावासाकी डिजीज और जन्मजात हृदय रोग
युवाओं में: मोटापा और स्मोकिंग जैसी आदतें
एलडीएल कोलेस्ट्रॉल धमनियों में प्लाक जमा करता है, जिससे ब्लॉकेज बनता है। इसे कंट्रोल करने के लिए दवाएं लगातार लेना जरूरी है। दवा छोड़ते ही खतरा फिर से बढ़ जाता है।
18 साल की उम्र करवा लें ये जांच
जाने-माने डॉक्टर्स का कहना है कि पहले कोलेस्ट्रॉल की जांच 30-35 साल की उम्र में करने की बात कही जाती थी, लेकिन अब इसे 18 साल से ही शुरू करना चाहिए। ब्लड प्रेशर की जांच भी पहले 30 साल की उम्र के बाद जरूरी मानी जाती थी, जबकि नई गाइडलाइन के मुताबिक, 18 साल से ही हर साल ब्लड प्रेशर चेक कराना चाहिए। ब्लड शुगर की जांच 35-40 साल बाद कराई जाती थी, लेकिन अब 18-20 साल से ही करवानी जरूरी है, खासकर अगर परिवार में डायबिटीज का इतिहास हो। इसी तरह हार्ट से जुड़ी जांचें (जैसे ईसीजी, स्ट्रेस टेस्ट आदि) पहले 40-45 साल बाद कराई जाती थीं, जबकि अब यह 25-30 साल से ही सलाह दी जा रही है, खासकर तब जब परिवार में हृदय रोग का इतिहास हो। डॉक्टरों का कहना है कि युवाओं में एथेरोस्क्लेरोसिस और हार्ट अटैक के मामले बढ़ रहे हैं, इसलिए समय पर जांच शुरू करना बेहद जरूरी है।