MP High Court SC ST Compensation Affidavit: MP HC का बड़ा फैसला, समझौता न करने की शर्त पर ही मिलेगा मुआवजा

MP High Court SC ST Compensation Affidavit: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत पीड़ितों को दिए जाने वाले मुआवजे को लेकर महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है।

जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने स्पष्ट किया कि अब पीड़ित मुआवजा प्राप्त करने से पहले एक शपथ पत्र (हलफनामा) प्रस्तुत करेंगे, जिसमें यह उल्लेख होगा कि वे किसी भी परिस्थिति में आरोपियों से समझौता नहीं करेंगे।

30 दिन में मुआवजा मिलेगा

अदालत ने कहा कि हलफनामा प्रस्तुत किए जाने के 30 दिनों के भीतर सरकार मुआवजा राशि जारी करेगी। यदि पीड़ित बाद में अदालत में बयान बदलते हैं, तो उन्हें दी गई राशि वापस करनी होगी। राशि न लौटाने की स्थिति में वसूली भू-राजस्व संहिता के प्रावधानों के तहत होगी।

इन मामलों को लेकर लिया गया फैसला

यह आदेश जबलपुर की तीन याचिकाओं- बेला मेहरा, अशिक वंशकार और संतोष सिंह गौड़- की सुनवाई के दौरान आया। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि पुलिस चार्जशीट दाखिल कर चुकी है, इसलिए उन्हें वर्तमान प्रावधानों के अनुसार 75% मुआवजा दिया जाना चाहिए।

क्या है मौजूदा नियम

  • अपराध दर्ज होने पर 50% मुआवजा

  • आरोप तय होने पर 25% मुआवजा

  • ट्रायल के निर्णय के बाद 25% मुआवजा दिया जाता है।

सरकारी पक्ष ने तर्क दिया कि कई मामलों में पीड़ित मुआवजा लेने के बाद अदालत में मुकर जाते हैं, जिससे आरोपी बरी हो जाते हैं। इसी प्रवृत्ति को रोकने के लिए यह आदेश पारित किया गया।

रेप मामलों में समझौते की प्रवृत्ति

  • NCRB 2019 के अनुसार, भारत में 94.2% रेप मामलों में आरोपी परिचित होते हैं, जिसके चलते सामाजिक और पारिवारिक दबाव में समझौते की प्रवृत्ति देखी जाती है।

  • कई बार आर्थिक प्रलोभन या मुआवजा देकर पीड़िता पर शिकायत वापस लेने का दबाव डाला जाता है।

  • हालांकि, भारतीय कानून (विशेषकर POCSO एक्ट) के तहत रेप मामलों में समझौता अवैध है, लेकिन ग्रामीण और छोटे शहरों में यह प्रचलन अधिक है।

  • सटीक प्रतिशत उपलब्ध नहीं है, क्योंकि अधिकांश समझौते गैर-औपचारिक स्तर पर होते हैं और आधिकारिक रिकॉर्ड में नहीं आते।

दोषसिद्धि दर के आंकड़े

  • राष्ट्रीय स्तर पर (2018–2022) रेप मामलों की दोषसिद्धि दर 27–28% रही।

  • 2022 में लगभग 2 लाख मामले लंबित थे, जिनमें से केवल 18,500 मामलों में ट्रायल पूरा हुआ। इनमें लगभग 5,000 मामलों में दोषसिद्धि हुई (लगभग 27%), जबकि 12,000 से अधिक मामलों में आरोपी बरी हो गए।

राज्यवार दोषसिद्धि दर (2020)

  • उत्तर प्रदेश: 55–57.3%

  • राजस्थान: 45.4%

  • दिल्ली: 47.3%

  • मध्यप्रदेश: 33.8%

वैश्विक तुलना

भारत की दोषसिद्धि दर ब्रिटेन (60% से अधिक) जैसे देशों की तुलना में काफी कम है।

प्रमुख चुनौतिया

  1. सबूतों की कमी और कमजोर जांच – सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में पुलिस जांच को “लचर” करार दिया है।

  2. न्यायिक देरी – लाखों मामले वर्षों तक लंबित रहते हैं।

  3. सामाजिक दबाव – परिचितों या वैवाहिक बलात्कार (marital rape) मामलों में सामाजिक कलंक और दबाव के कारण शिकायत वापस ली जाती है।

  4. आर्थिक और कानूनी जटिलताएँ – मुआवजा या आर्थिक दबाव से न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित होती है।

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