PM Modi Degree RTI Privacy Case: दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री को लेकर एक अहम फैसला दिया है।
कोर्ट ने 2016 में सेंट्रल इंफॉर्मेशन कमीशन (CIC) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें दिल्ली यूनिवर्सिटी को पीएम मोदी की बीए डिग्री की जानकारी RTI के तहत देने को कहा गया था।
कोर्ट ने साफ किया कि डिग्री और मार्कशीट जैसी जानकारी “व्यक्तिगत जानकारी” है और बिना बड़े सार्वजनिक हित के इसे साझा नहीं किया जा सकता।
RTI एक्ट और व्यक्तिगत जानकारी
RTI एक्ट, 2005 की धारा 8(1)(j) कहती है कि:
- किसी व्यक्ति की निजी जानकारी, जिसका किसी सार्वजनिक काम या हित से संबंध न हो, साझा नहीं की जाएगी।
- अगर ऐसी जानकारी देने से किसी की गोपनीयता का उल्लंघन हो, तो उसे रोका जाएगा।
- हां, अगर बड़ा सार्वजनिक हित हो, तो पब्लिक इंफॉर्मेशन ऑफिसर (PIO) इसे साझा करने का निर्णय ले सकता है।
इसमें यह भी प्रावधान है कि संसद या विधानसभा को दी जाने वाली जानकारी किसी नागरिक से नहीं छिपाई जा सकती।
लेकिन कोर्ट ने कहा कि शैक्षणिक रिकॉर्ड संसद को देने लायक जानकारी नहीं है क्योंकि यह निजी है।
निजता बनाम सार्वजनिक हित
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि यूनिवर्सिटी और छात्र के बीच एक भरोसे का रिश्ता होता है, जिसमें छात्र अपनी निजी जानकारी यूनिवर्सिटी को सौंपते हैं।
इसे बिना वजह साझा करना गोपनीयता का उल्लंघन होगा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि “सार्वजनिक हित” का मतलब सिर्फ जनता की जिज्ञासा या चर्चा नहीं है, बल्कि यह किसी ठोस सार्वजनिक कर्तव्य से जुड़ा होना चाहिए।
पीएम मोदी के मामले में डिग्री का सीधा संबंध किसी सार्वजनिक गतिविधि से नहीं पाया गया, इसलिए निजता को प्राथमिकता दी गई।
गुजरात हाई कोर्ट का फैसला
इसी तरह गुजरात हाई कोर्ट ने भी पीएम मोदी की एमए डिग्री को लेकर CIC के आदेश को रद्द किया था।
कोर्ट ने कहा था कि डिग्री और मार्कशीट जैसी जानकारियां यूनिवर्सिटी फिड्यूशियरी (भरोसे की क्षमता) में रखती है और इन्हें सार्वजनिक करना निजता का उल्लंघन होगा।
क्या डिग्री पहले सार्वजनिक हुई थी?
2016 में बीजेपी ने पीएम मोदी की डिग्री के सर्टिफिकेट्स की कॉपी सार्वजनिक की थी।
लेकिन RTI में मांगी गई जानकारी यूनिवर्सिटी के आधिकारिक रिकॉर्ड से जुड़ी थी, जैसे 1978 के छात्रों के नाम और एनरोलमेंट नंबर।
कोर्ट ने इन्हें निजी मानकर सार्वजनिक करने से मना कर दिया।