SEHORE: हर बार कुबेरेश्वर में मौत क्यों? आयोजन होते ही प्रशासन की नींद क्यों लग जाती है?

सीहोर | कुबेरेश्वर धाम

सावन के महीने में भक्त उमड़ते हैं, भीड़ लगती है, रुद्राक्ष बंटता है…और अफरातफरी मच जाती है। फिर दो महिलाओं की मौत हो जाती है।

सीहोर के कुबेरेश्वर धाम में मंगलवार सुबह जैसे ही रुद्राक्ष वितरण शुरू हुआ, अव्यवस्था की ऐसी भगदड़ मची कि दो महिलाओं की जान चली गई। कई घायल हुए, लेकिन ना तो वहां पुलिस थी, ना कोई जवाबदेह नजर आया।

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सवाल ये है

  • क्या जब आयोजन होता है तो प्रशासन की नींद लग जाती है?
  • या आयोजकों को सांप सूं जाता है?
  • हर बार रुद्राक्ष वितरण के समय ऐसी भगदड़ क्यों होती है? और हर बार मासूम ही क्यों मरते हैं?

भीड़ थी, लेकिन कोई व्यवस्था नहीं

मीडिया की टीम जब मौके पर पहुंची तो तस्वीरें डराने वाली थीं। श्रद्धालुओं का हुजूम हर तरफ दिखा, लेकिन पुलिसकर्मी या स्वयंसेवक एक भी नहीं।

कई लोग खुद को छतरी और चादरों से धूप से बचा रहे थे, तो कई महिलाएं हाथ में चोट लेकर भूख-प्यास से लड़ती नजर आईं।

मेरठ से आई एक महिला सूरज बाई का दर्द सुनिए

हम यहां कथा सुनने आए थे। कोई सुविधा नहीं है। सब झूठ है। ये भगदड़ इसी लोहे की जाली के पास हुई थी।”

दिल्ली से आए जतिन शर्मा ने बताया

सुबह 5 बजे से ही भीड़ लग गई थी। रुद्राक्ष वितरण शुरू होते ही धक्का-मुक्की होने लगी, और कुछ ही मिनटों में महिलाएं नीचे गिर गईं।”

Balaguru K (@BalagurukIAS) / X

प्रशासन और आयोजकों की चुप्पी

हादसे के बाद सीहोर के अफसर घटनास्थल पर पहुंचे, निरीक्षण किया और बंद कमरे में चर्चा की, लेकिन मीडिया से बात करने या कोई जवाब देने से साफ इनकार कर दिया। कलेक्टर, एसपी, यहां तक कि आयोजकों ने तक कहा कुछ नहीं हुआ’…मंदिर प्रबंधन ने तो यह तक कह दिया थोड़ा बहुत धक्का लग जाना भगदड़ नहीं होता।”

लेकिन अस्पताल में दो डेड बॉडी पहुंची हैं।

दोनों महिलाएं एक उत्तर प्रदेश और दूसरी गुजरात की थीं…परिवार वाले बुधवार को शव लेने पहुंचे।

ये पहली बार नहीं है कि कुबेरेश्वर धाम के आयोजन में भगदड़ ना मची हो और किसी की जान ना गई हो। साल 2022 में भी कुबेरेश्वर में भगदड़ हुई थी जिसमें एक 3 साल के बच्च और एक महिला की जान गई थी…इसके अलावा करीब 73 लोग भी बीमार पड़े थे। हर साल सावन में यहां भीड़ उमड़ती है, हर बार प्रशासन दावा करता है कि “हम तैयार हैं”, और हर बार श्रद्धालु यही कहते हैं यहां भगवान हैं, लेकिन व्यवस्था नहीं है।”

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आखिर कौन है इन सबका जिम्मेदार ?

  • क्या आयोजक केवल प्रचार में व्यस्त हैं?
  • क्या प्रशासन को रुद्राक्ष वितरण की भीड़ का अंदाजा नहीं था?
  • क्या श्रद्धालुओं की जान इतनी सस्ती है कि हर साल दो-तीन मौतें ‘नॉर्मल‘ मानी जाएं?

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अब तो जवाब चाहिए…

श्रद्धालु अब भी कांवड़ लेकर धाम की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या उनके लिए रास्ता सिर्फ श्रद्धा से भरा है या सिस्टम की लापरवाही से ये रास्ता उन्हें खतरे की और ले जा रहा है? सवाल काफी बड़ा है लेकिन इसका जवाब नकिसी के पास नहीं, क्योंकि इन घटनाओं की जिम्मेदारी कोई लेना ही नहीं चाहता…आयोजक वयस्त है या प्रशासन सुस्त है..! ये तो आने वाले वक्त में पता चल ही जाएगा।

ये सिर्फ एक हादसा नहीं, एक पैटर्न है। और इस पैटर्न को अब तोड़ना जरूरी है।

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