वो सियासी पटकथा जिससे धनखड़ को मिला विश्राम
आर्टिकल 67(A) क्या है,जिसके तहत जगदीप धनखड़ ने दिया इस्तीफ़ा
आर्टिकल 67(A) का त्यागपत्र में आखिर जिक्र क्यों ?
संविधान के इस आर्टिकल के मुताबिक उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए अपने हाथ से लिखे पत्र से इस्तीफा दे,यह इस्तीफा तुरंत माना जाएगा। नियम के मुताबिक उपराष्ट्रपति अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को ही देता है ।जगदीप धनखड़ ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(a) की बात अपने त्याग पत्र में की है ।ऐसा नियम है उपराष्ट्रपति पूरे पांच साल के कार्यकाल से पहले कभी भी इस्तीफा दे सकता है। इस्तीफे के लिए सिर्फ राष्ट्रपति को एक लिखित रूप में सूचना देनी होती है। यह अनुच्छेद 67 के अंतर्गत आता है।उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों की वजह से अचानक इस्तीफा दिया, उन्होंने आर्टिकल 67(A) का हवाला देते हुए इस्तीफा दिया.जगदीप धनखड़ के तत्काल प्रभाव से दिए इस्तीफे को स्वीकार कर लिया गया है ।संविधान में ऐसी सभी स्थितियों के लिए प्रावधान हैं, जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा पद छोड़ना भी शामिल है, चाहे वह इस्तीफे, मृत्यु या स्वास्थ्य कारणों से हो । इस्तीफे की स्थिति में नए उपराष्ट्रपति का चुनाव आम तौर पर दो महीने के भीतर होना चाहिए ।हालांकि इस्तीफे से कोई बड़ा संवैधानिक संकट पैदा नहीं होगा, क्योंकि संवैधानिक अधिकार राष्ट्रपति के पास है । यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पद कभी खाली नहीं रह सकते ।संविधान में इसकी व्यवस्था है। उपराष्ट्रपति के इस्तीफे या उनके कार्यकाल की किसी अन्य अप्रत्याशित स्थिति में राज्यसभा के उपसभापति जिम्मेदारियां संभालते हैं ।धनखड़ पहले सुप्रीम कोर्ट में सीनियर वकील के तौर पर प्रैक्टिस करते थे। उन्हें 11 अगस्त 2022 को भारत का उपराष्ट्रपति बनाया गया था। उपराष्ट्रपति होने के नाते वे राज्यसभा के सभापति भी थे। इससे पहले, वे 2019 से 2022 तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे। उपराष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, धनखड़ ने संसदीय सर्वोच्चता के सिद्धांत की प्रमुखता से वकालत की और सुप्रीम कोर्ट के मूल संरचना सिद्धांत पर सवाल उठाया। कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ धनखड़ की तीखी टिप्पणियों पर सुप्रीम कोर्ट से भी इसी तरह की प्रतिक्रियाएं आईं । हाल ही में, उन्होंने राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए समयसीमा निर्धारित करने वाले फैसले का विरोध किया और अनुच्छेद 142 की शक्ति को “न्यायिक परमाणु मिसाइल” करार दिया।उप राष्ट्रपति पद पर रहते हुए जगदीप धनखड़ की बढ़ती असहमति आखिरकार उनके इस्तीफे तक पहुंची। कुछ महीने पहले तक जिनका कद सत्ता के सबसे करीब माना जाता था, वही अब पार्टी नेतृत्व के लिए असहज हो गए थे। तीन बड़े घटनाक्रमों ने इस टकराव को साफ कर दिया जिसमें पहला शिवराज पर मंच से सीधा हमला, दूसरा जस्टिस वर्मा पर महाभियोग की अलग लाइन और सबसे महत्वपूर्ण राज्यसभा में जेपी नड्डा से खुला तनाव। सबसे पहले जानते हैं, आखिर उन्होंने 10 जुलाई, 2025 को ऐसा क्या कहा था कि उनके इस्तीफे को इस्तीफा न समझकर राजनीति समझा जा रहा है। दरअसल 10 जुलाई 2025 को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में स्पीच दे रहे थे। बोले- ‘I will retire at the right time, August 2027, subject to divine intervention.’ मतलब- मैं सही समय पर रिटायर होऊंगा। और वह समय है अगस्त 2027, अगर कोई दिव्य शक्ति आ जाए तो बात अलग है।’जगदीप धनखड़ ही जानते हैं कि वे किस दिव्य शक्ति की बात कर रहे थे, लेकिन 21 जुलाई को उन्होंने इस्तीफा दे दिया। वजह खराब सेहत बताई। बातें ये भी हुईं कि क्या सच में खराब सेहत की वजह से धनखड़ ने इस्तीफा दिया या इसकी स्क्रिप्ट पहले से तैयार थी, क्या सरकार से उनकी दूरी बढ़ रही थी।
किसानों से जो वादा किया था, वो निभाया क्यों नहीं?
3 दिसंबर 2024, मुंबई में केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान के शताब्दी समारोह में मंच पर बैठे थे केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़। सब कुछ सामान्य चल रहा था जब अचानक धनखड़ ने किसानों से किए गए वादों को लेकर शिवराज सिंह को सार्वजनिक तौर पर घेर लिया। धनखड़ ने शिवराज की ओर इशारा करते हुए कहा— “कृषि मंत्री जी, आपका एक-एक पल भारी है। मेरा आपसे आग्रह है कि बताइए किसानों से क्या वादा किया गया था और क्यों नहीं निभाया गया?” यह सवाल सीधे उस पृष्ठभूमि से जुड़ा था जब किसान आंदोलन के दौरान केंद्र सरकार ने एमएसपी और अन्य मांगों पर भरोसा दिलाया था। मंच से इस तरह का तीखा सवाल पार्टी और संघ को नागवार गुज़रा। बताया गया कि धनखड़ को चेतावनी दी गई कि दोबारा ऐसा हुआ तो इसे अनुशासनहीनता माना जाएगा। हालांकि, शिवराज सिंह ने व्यक्तिगत तौर पर इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
क्यों चलाई अलग चाल?
जस्टिस यशवंत वर्मा के घर जब जले हुए नोटों के बंडल बरामद हुए, तो लोकसभा में 150 सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव पर दस्तखत कर दिए। ये संख्या पर्याप्त थी। लेकिन धनखड़ ने राज्यसभा में खुद अपने सदन के 63 विपक्षी सांसदों के साइन से अलग प्रस्ताव तैयार किया।सवाल उठने लगे कि जब लोकसभा में जरूरी संख्या पहले ही पूरी हो चुकी है, तो राज्यसभा में अलग प्रस्ताव लाने का क्या मकसद? सूत्र बताते हैं कि धनखड़ चाहते थे कि यह प्रक्रिया उन्हीं के सदन से शुरू हो। इससे कानून मंत्री किरेन रिजिजू भी नाराज हुए।
जब राज्यसभा में नड्डा से भिड़े धनखड़
21 जुलाई 2025 मानसून सत्र के पहले ही दिन ऑपरेशन सिंदूर पर संसद गरमाई हुई थी। लोकसभा में राहुल गांधी बोले तो उन्हें स्पीकर ओम बिरला ने रोक दिया, लेकिन राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे को बोलने की छूट मिल गई। खड़गे सिर्फ नियमों पर बोलने वाले थे, लेकिन उन्होंने भाषण देना शुरू कर दिया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आपत्ति जताई और धनखड़ से कहा कि “आपने सिर्फ नियम पर बोलने की अनुमति दी थी, ये तो भाषण दे रहे हैं।”लेकिन धनखड़ ने खड़गे को नहीं रोका। यहीं से टकराव खुला हो गया। बाद में नड्डा ने नाराज़गी ज़ाहिर की और कहा कि “सिर्फ मेरी बात रिकॉर्ड में दर्ज होनी चाहिए।” पीएसी की मीटिंग भी बिखर गई, जेपी नड्डा और रिजिजू बिना बताए नदारद रहे। सूत्रों के मुताबिक गृह मंत्री तक को जानकारी दी गई और वहीं से संदेश गया कि अब बहुत हो चुका।इस तरह धनखड़ की पटकथा को सियासी विराम दिया गया।
सुनील दत्त तिवारी