मौसम का रूमानी अंदाज मन को भाया…सड़कों का असली चेहरा सामने आया !
भोपाल के आसमान पर इन दिनों बादलों का डेरा रहमत की बरसात कर रहा है…खरामा-खरामा गिरती बारिश की बूंदों ने सारे आलम को अपने आगोश में ले लिया है…दरीचों से आती शबनम में पगी हवा बदन को छूती हुई रूह तक दस्तक देती महसूस हो रही है इन दिनों…सूरज की भीगी हुई आंखों से रौशनी नुमाया हो जरूर रही है लेकिन उसकी किरनो पर बादलों की पहरेदारी है…शहर का पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा मौसम के इस रूमानी अंदाज का कायल नजर आ रहा है…पानी की हर एक बूंद को पी जाने को बेकरार दरख्तों का ये रक्स रह-रह कर इन बूंदों को जाया करता हुआ कुदरत की बेहिसाब मेहरबानी की तस्दीक कर रहा है…फिजा में घुली रूमानियत उमंगों के ज्वार को हवा दे रही है…दिल चाहता है कि बस एक टुक मौसम के इस अंदाज को निहारते बैठे…सावन की इस झड़ी ने देखा जाए तो तपती जमीन में ठंडक की परत तो बिछा दी है…जो राहत की बात है लेकिन इसके उलट इस बरसात ने अपनी सुंदरता पर इतराती.. बलखाती शहर की सड़कों का असली चेहरा भी उजागर कर दिया है…चंद दिनों पहले जो अफसरान इन सड़कों की बनावट पर रश्क करते नहीं थकते थे अब सिर धुन रहे है कि क्या से क्या हो गया….सडकों का मेकअप उतर चुका है और दिखाई दे रहे है कीचड़ से सने वो दाग जो कहीं कहीं तो किसी तालाब का अक्स मालूम हो रहे हैं…बारिश के पानी ने इन गड्ढों को ऐसे फरेब में तब्दील कर दिया है कि इन्हे पार करना अपनी जान से खिलवाड़ करने जैसा है…जो सड़कें महानुभावों के सफर को आसान बनाती है वो तो मुंह चिढ़ा ही रही है…गली मोहल्लों और निचली बस्तियों की सड़कों के तो हाल ही बेहाल है…लोगों का निकलना दूभर है और जो मजबूरन घरों से निकल रहे हैं उन्हे जोखिम उठाना पड़ रहा है कहना गलत नहीं होगा…ये नजारे हर साल आम होते हैं जिम्मेदार सड़कों आकर मातहतों को हिदायतें देने की खानापूर्ति करते हैं लेकिन ये नही करते जो उन्हे करना चाहिए….यानि ऐसा कोई परमानेंट इलाज जिसके बाद कैसी भी मूसलाधार बरसात हो ना तो सड़कें अपना वजूद खोती दिखें और ना ही नाले अपनी हदें पार कर लोगों की दहलीज पर दस्तक दें…शहर को अमेरिका और पेरिस की तर्ज पर विकसित करने का एलान करने वालों को समझना होगा कि कहने भर से ही ये नहीं हो जाएगा…करके दिखाना होगा क्योंकि बात जनहित की है जिसे सर्वोपरि मानने की डींगें हाकते हैं जिम्मेदार…अविनाश ठाकुर