आजादी के गुमनाम नायक…जिनके नाम से खौफ खाते थे अंग्रेज

15 अगस्त केवल तिरंगे की ऊँची उड़ान का दिन नहीं है, बल्कि उन वीर आत्माओं का स्मरण करने का दिन है, जिनके संघर्ष और बलिदान से हम आज़ाद हुए—पर जिनके नाम इतिहास के पन्नों में दब गए। आज हम आपको 15 ऐसे महानायकों से मिलवाएँगे—10 मध्य प्रदेश से और 5 पूरे देश से—जिनकी वीरता और साहस हमें गर्वित करते हैं। हर परिचय लगभग 100 शब्दों का है, ताकि उनकी गाथा भावपूर्ण, जानकारीपूर्ण और यादगार बने।

मध्य प्रदेश के नायक

1. टंट्या भील (निमाड़–इंदौर)

“आदिवासी रॉबिन हुड” कहे जाने वाले तंट्या भील ने 19वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटिश अत्याचार के खिलाफ जंगलों में गुरिल्ला युद्ध छेड़ा। गरीबों की मदद और अंग्रेजों की संपत्ति लूटकर लोगों में बांटने के कारण वे ग्रामीणों के हीरो बन गए। दिसंबर 1889 में उन्हें पकड़कर इंदौर में फांसी दी गई। आज भी पातालपानी रेलवे स्टेशन और आसपास उनकी स्मृति में स्मारक बने हैं, और आदिवासी लोकगीतों में उनका साहस गाया जाता है।

2. भीमा नायक (बड़वानी)

1857 की पहली आज़ादी की लड़ाई में बड़वानी के भीमा नायक ने आदिवासी सेना संग अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला। विद्रोह दबाने के बाद अंग्रेजों ने उन्हें अंडमान की सेलुलर जेल भेज दिया, जहाँ 1876 में उनका निधन हो गया। भीमा नायक आदिवासी स्वाभिमान और प्रतिरोध की जीवंत मिसाल हैं। आज भी बड़वानी और आसपास के क्षेत्रों में उनकी जयंती और बलिदान दिवस मनाया जाता है।

3. खज्या नायक (पश्चिमी मध्य प्रदेश)

खज्या नायक ने जनजातीय अधिकारों, भूमि और संसाधनों की रक्षा के लिए ब्रिटिश शासन और स्थानीय ज़मींदारों दोनों के खिलाफ आंदोलन चलाया 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़े थे। वे निमाड़ क्षेत्र के एक प्रसिद्ध भील नेता थे और 1857 की क्रांति में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हाल के वर्षों में राष्ट्रपति और राज्यपाल तक ने उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की है। खज्या नायक आज आदिवासी गौरव और संघर्ष का प्रतीक माने जाते हैं।

4. रानी अवंतिबाई लोधी (रामगढ़, डिंडोरी)

रामगढ़ रियासत की रानी अवंतिबाई लोधी ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के ‘Court of Wards’ शासन को अस्वीकार करते हुए हथियार उठा लिए। अपने सैन्य बल के साथ उन्होंने कई मोर्चों पर अंग्रेजों को चुनौती दी। जब अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया, तो 1858 में उन्होंने तलवार से आत्मोत्सर्ग किया। उनकी बहादुरी आज भी बुंदेलखंड और महाकौशल के लोकगीतों में गूंजती है।

 

5. राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह (जबलपुर)

1857 के विद्रोह के दौरान गोंडवाना के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह अंग्रेजों के खिलाफ सक्रिय रहे। पकड़े जाने पर उन्हें तोप से बांधकर उड़ा दिया गया—यह अंग्रेजों की क्रूरता का भयावह उदाहरण था। जबलपुर में आज भी उनकी स्मृति में शहीदी स्थल है, जहाँ हर साल श्रद्धांजलि दी जाती है।

6. ठाकुर किशोर सिंह (दमोह, बुंदेलखंड–महाकौशल)

ठाकुर किशोर सिंह ने बुंदेलखंड और महाकौशल में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया। उन्होंने स्थानीय राजपूतों और ग्रामीणों को संगठित कर क्रांति की लहर पैदा की। दमोह के ऐतिहासिक अभिलेख और लोककथाएँ आज भी उनके साहस का प्रमाण देती हैं।

7. रानी फूल कुंवर (गोंडवाना क्षेत्र)

रानी फूल कुंवर ने गोंडवाना क्षेत्र में आदिवासी स्वशासन, भूमि अधिकार और समानता के लिए संघर्ष किया। ब्रिटिश शासन और शोषणकारी व्यवस्थाओं के खिलाफ उनके नेतृत्व ने आदिवासी चेतना को मजबूत किया। उनकी गाथा मुख्यतः स्थानीय किंवदंतियों और शोध में मिलती है, लेकिन अब उनके नाम पर स्मृति कार्यक्रम भी होने लगे हैं।

8. सरदार गंजन सिंह कोरकू (बैतूल)

1930 के जंगल सत्याग्रह में सरदार गंजन सिंह कोरकू ने ब्रिटिशों के वन-अधिकार के खिलाफ अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने आदिवासी समुदाय को संगठित किया और स्वदेशी आंदोलन का संदेश फैलाया। उनके योगदान का उल्लेख मुख्यतः स्थानीय इतिहास और आदिवासी अध्ययनों में मिलता है।

9. बादल भोई (छिंदवाड़ा)

“छिंदवाड़ा के गांधी” कहे जाने वाले बादल भोई ने 1923 में हजारों आदिवासियों के साथ शांतिपूर्ण आंदोलन का नेतृत्व किया। उनका उद्देश्य अंग्रेजी शासन के अन्याय और वन कानूनों के खिलाफ जागरूकता फैलाना था। छिंदवाड़ा में उनके नाम पर संग्रहालय और चौक उनकी स्मृति में बने हैं।

10. श्यामसुंदर श्याम (दतिया)

1942 के Quit India Movement में श्यामसुंदर श्याम ने नारायण खरे के साथ 34 दिनों तक भूमिगत रहकर आंदोलन को संगठित किया। गांधीजी का संदेश गाँव-गाँव तक पहुँचाया। स्वतंत्रता के बाद वे विधायक और Vindhya Pradesh विधानसभा के उपसभापति रहे। 1952 से 1985 तक उन्होंने राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई।


देश के अन्य महानायक

11. पीर अली खान (पटना, बिहार)

1857 की क्रांति के नायक पीर अली खान ने पटना में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ विद्रोह संगठित किया। 7 जुलाई 1857 को उन्हें सार्वजनिक रूप से फांसी दी गई। उनका बलिदान बिहार के स्वतंत्रता आंदोलन का प्रेरणास्रोत है।

12. कनकलता बरुआ (असम)

17 वर्ष की उम्र में कनकलता बरुआ ने 1942 के Quit India Movement में तिरंगा लेकर जुलूस का नेतृत्व किया। गोहपुर में पुलिस गोलीबारी में शहीद होने से पहले उन्होंने झंडा नहीं छोड़ा। उनकी गाथा असम के लोकगीतों में अमर है।

13. मतंगिनी हाज़रा (बंगाल)

“गांधी बुढ़िया” कहलाईं मतंगिनी हाज़रा ने 73 वर्ष की आयु में Quit India आंदोलन में भाग लिया। तिरंगा थामे आगे बढ़ते हुए पुलिस की गोली से शहीद हुईं। वे बंगाल की महिला शक्ति और साहस की प्रतीक हैं।

14. तिरोत सिंह सिएम (मेघालय)

1830 के दशक में ईस्ट इंडिया कंपनी के विस्तार के खिलाफ तिरोत सिंह सिएम ने ख़ासी हिल्स में संघर्ष किया। 1835 में गुवाहाटी जेल में उनकी मृत्यु हो गई। उनका योगदान उत्तर-पूर्व के स्वतंत्रता इतिहास में गर्व से दर्ज है।

15. दुर्गावती देवी ‘दुर्गा भाभी’ (उत्तर प्रदेश – लाहौर)

HSRA की साहसी क्रांतिकारी दुर्गा भाभी ने 1931 में भगत सिंह और राजगुरु को ब्रिटिश पुलिस से बचाने के लिए पुरुष वेश धारण किया और ट्रेन से सुरक्षित निकाल लिया। उन्होंने अंग्रेज अधिकारियों पर गोली चलाने का साहस भी दिखाया।

ये 15 नायक— 10 मध्य प्रदेश और 5 पूरे देश से—हमें याद दिलाते हैं कि आज़ादी केवल परेड या भाषणों का विषय नहीं थी, बल्कि यह अनगिनत वीर आत्माओं की शहादत का परिणाम है। इस 15 अगस्त, जब हम तिरंगा फहराएँ, इन अनसुने नायकों को भी स्मरण करें—क्योंकि उनकी कहानियाँ हमें आज़ादी की असली कीमत बताती हैं।

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