Umang Singhar On Adivasi: आदिवासियों के धर्म पर सियासी तकरार…अपने बयान पर घिरे सिंघार! आंकड़े बताते हैं 87 % आदिवासी हिंदू

Umang Singhar On Adivasi: आदिवासियों की धार्मिक पहचान को लेकर हमेशा से ही सियासत होती आ रही है। गाहे-बगाहे ये मुद्दा हर बार एमपी की सियासत में उबाल लाने का काम करता है। हाल ही में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के बयान- “हम आदिवासी हैं, हिंदू नहीं”- ने फिर से राजनीतिक बहस छेड़ दी है। इस बयान पर लगातार पलटवार हो रहे हैं और सिंघार चौतरफ़ा घिरते नज़र आ रहे हैं। सिसियासत है तो सियासत होगी लेकिन आईए हम समझते हैं कि आखिर भारत में आदिवासियों की धार्मिक पहचान की हकीकत क्या है।

सांस्कृतिक आधार

हिंदू धर्म में प्रकृति की पूजा, गाँव के देवता, कुलदेवता, और पितरों का सम्मान बहुत महत्वपूर्ण है। आदिवासी समाज में भी जंगल, पहाड़, नदी, सूरज-चाँद, और धरती माता की पूजा होती है। उनके नाच-गान, फसल उत्सव, और स्थानीय मंदिरों की परंपराएँ हिंदू संस्कृति से मिलती-जुलती हैं।विश्लेषण: भले ही आदिवासियों के रीति-रिवाज़ और प्रतीक अलग हों, लेकिन प्रकृति के प्रति श्रद्धा, धर्म-नैतिकता, और ग्राम देवताओं का सम्मान हिंदू संस्कृति से जुड़ा हुआ दिखता है।

सोच और मान्यताएं

हज़ारों सालों से आदिवासी और गैर-आदिवासी गाँववाले एक साथ रहते आए हैं। वे हाट-बाजार, त्योहार, लोककला, और कामकाज में एक-दूसरे के साथ जुड़े हैं। विवाह, जन्म-मृत्यु के संस्कार, और त्योहारों की समय-सारणी में कुछ अंतर हैं, लेकिन सांस्कृतिक ताना-बाना एक जैसा दिखता है।विश्लेषण: यह एकता हिंदू संस्कृति की समावेशी प्रकृति को दिखाती है, जिसमें अलग-अलग परंपराएँ एक ही छत के नीचे आ सकती हैं।

दार्शनिक समानता: धर्म, कर्म, और नैतिकता

हिंदू धर्म में प्रकृति के नियम (ऋत), कर्तव्य (धर्म), कर्म-फल, और पुनर्जन्म जैसे विचार महत्वपूर्ण हैं। आदिवासी समुदायों में भी अच्छे कर्म, प्रकृति का सम्मान, और पूर्वजों की पूजा के विचार मजबूत हैं।विश्लेषण: नैतिकता और जीवन-दृष्टि की यह समानता आदिवासियों की आस्था को हिंदू दर्शन से जोड़ती है।

पूजा और रीति-रिवाज

आदिवासी इलाकों में वनदेवी, नाग-पूजा, काली-दुर्गा के स्थानीय रूप, शिव-महादेव, और भैरव जैसे देवताओं की पूजा होती है। उनके त्योहार जैसे सरहुल, करमा, और नवाखानी हिंदू त्योहारों जैसे नवरात्रि, हरियाली, और पितृपक्ष से मिलते-जुलते हैं।विश्लेषण: भले ही देवताओं के नाम और रूप अलग हों, लेकिन पूजा की विधि, व्रत, और प्रसाद जैसे रीति-रिवाज हिंदू परंपराओं से मेल खाते हैं।

इतिहास से जुड़ाव

भारतीय संस्कृति ने हमेशा समावेश का रास्ता अपनाया है। नई परंपराओं को अपनाकर उन्हें देवी-देवताओं के परिवार में जगह दी गई। आदिवासियों की परंपराएँ भी धीरे-धीरे हिंदू संस्कृति में शामिल हुईं।विश्लेषण: यह समावेश जबरदस्ती नहीं, बल्कि सैकड़ों सालों की सांस्कृतिक निकटता का परिणाम है।

कानूनी और सामाजिक पहचान

भारत का संविधान आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (ST) के रूप में सामाजिक-आर्थिक आधार पर परिभाषित करता है, न कि धर्म के आधार पर। लेकिन रोज़मर्रा के जीवन में कई आदिवासी हिंदू विवाह रीति, स्थानीय पंडितों, और गोत्र-पंचायतों से जुड़े हैं।विश्लेषण: कानून भले ही धर्म-निरपेक्ष हो, लेकिन आदिवासियों का जीवन हिंदू संस्कृति के साथ कई तरह से जुड़ा हुआ है।

रोज़मर्रा की परंपराएं

आदिवासी समाजों में बच्चों के नामकरण, श्राद्ध, मंगल-गान, शिव-काली की पूजा, तिलक-रोली जैसे प्रतीक हिंदू संस्कृति से मिलते-जुलते हैं।विश्लेषण: ये साझा प्रतीक और संस्कार हिंदू धर्म के साथ उनकी निकटता को दर्शाते हैं।

विविधता और एकता

कुछ आदिवासी समुदाय सरना या अन्य प्रकृति-आधारित धर्म मानते हैं। यह हिंदू धर्म की बहुलवादी प्रकृति के खिलाफ नहीं, बल्कि उसका हिस्सा है। हिंदू धर्म एक बड़ा छत्र है, जिसमें अलग-अलग परंपराएँ एक साथ रह सकती हैं।विश्लेषण: आदिवासियों की आस्थाएँ हिंदू धर्म की शाखाएँ हैं, जो इसकी विविधता को और समृद्ध करती हैं।

आपत्तियां और जवाब

आपत्ति: “आदिवासी अलग धर्म हैं, उन्हें हिंदू कहना गलत है।”
जवाब: यह लेख किसी को हिंदू थोपने की बात नहीं करता। यह केवल सांस्कृतिक और धार्मिक समानताओं को दर्शाता है।
आपत्ति: “कुछ आदिवासी अपनी अलग पहचान चाहते हैं।”
जवाब: अलग पहचान का सम्मान है। हिंदू धर्म एक बड़ा परिवार है, जिसमें अलग-अलग परंपराएँ अपनी जगह बना सकती हैं।

कांग्रेस की सोच

  • कांग्रेस आदिवासियों को सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ा मानती है और उनके विकास, शिक्षा, और आरक्षण पर ज़ोर देती है।
  • जवाहरलाल नेहरू ने “पंचशील नीति” में कहा कि आदिवासियों को उनकी संस्कृति के साथ जीने देना चाहिए, लेकिन उन्हें विकास से जोड़ा जाए।
  • महात्मा गांधी ने आदिवासियों को “हरिजन” कहा और उन्हें ग्राम स्वराज का हिस्सा माना।

Analysis: कांग्रेस आदिवासियों को धर्म से परे सामाजिक इकाई मानती है और उनकी धार्मिक पहचान पर स्पष्ट रुख नहीं लेती।

महात्मा गांधी की सोच

  • गांधी आदिवासियों को ग्रामीण भारत की आत्मा मानते थे और उनकी सादगी व प्रकृति से जुड़ाव को महत्व देते थे।
  • उन्होंने आदिवासियों को “हरिजन आंदोलन” में शामिल किया, लेकिन उन्हें स्पष्ट रूप से हिंदू नहीं कहा।

जवाहरलाल नेहरू की सोच

  • नेहरू का रुख विकास और सांस्कृतिक संरक्षण का था। उनकी पंचशील नीति ने आदिवासियों को स्वायत्तता और शिक्षा दी।
  • वे आदिवासियों को धर्म से परे सामाजिक-सांस्कृतिक समूह मानते थे।

आरएसएस और भाजपा की सोच

  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा आदिवासियों को “वनवासी” यानी “जंगल के हिंदू” मानते हैं।
  • वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन आदिवासियों में शिक्षा, स्वास्थ्य, और हिंदू संस्कृति को बढ़ावा देते हैं।
  • आरएसएस का मानना है कि आदिवासी सनातन धर्म का हिस्सा हैं।

Analysis: आरएसएस और भाजपा आदिवासियों को स्पष्ट रूप से हिंदू मानते हैं और उनकी संस्कृति को हिंदुत्व से जोड़ते हैं।

निष्कर्ष: 

जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर आदिवासी (87%) खुद को हिंदू मानते हैं, बाकी ईसाई, सरना या अन्य धर्मों से जुड़े हैं। संविधान ने भी उन्हें धर्म से नहीं, बल्कि ST यानी सामाजिक-आर्थिक वर्ग के रूप में पहचाना है।

ऐसे में उमंग सिंघार का कहना कि “हम आदिवासी हैं, हिंदू नहीं” सच से दूर है। हकीकत यह है कि अधिकतर आदिवासी हिंदू संस्कृति और परंपरा से जुड़े हैं। यही सच्चाई उनके बयान को आईना दिखाती है।

शहर चुने