मुठभेड़ में रहते हैं सबसे आगे..माओवादियों को उन्हीं की भाषा में देते हैं करारा जबाव, जानिए कौन होते हैं DRG जवान?

DRG Jawan

रायपुर। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में सोमवार दोपहर नक्सलियों ने आईईडी ब्लास्ट कर सेना के वाहन को उड़ा दिया। जिसमें 8 जवान शहीद हो गए, जिन्हें एंटी-नक्सल ऑपरेशन से लौटने के दौरान निशाना बनाया गया। शहीद हुए सभी जवान डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) का हिस्सा थे। (DRG Jawan)

डीआरजी का गठन राज्य के नक्सल प्रभावित जिलों में माओवादियों पर लगाम लगाने के लिए किया गया था। आइए जानते हैं कि आखिर डीआरजी यूनिट क्या है और क्यों इन्हें नक्सलियों का सबसे बड़ा दुश्मन कहा जाता है? (DRG Jawan)

क्या है डीआरजी?

दो दशक पहले लगातार हो रहे नक्सली हमलों के बीच राज्य सरकार को इस बात का आभास हुआ कि माओवादियों के सफाये के लिए केवल सुरक्षाबल ही काफी नहीं हैं। जिसके बाद राज्य पुलिस में एक नई यूनिट बनाई गई थी।

राज्य की तत्कालीन रमन सिंह सरकार ने उस समय यह तय किया कि एक ऐसी फोर्स बनाई जाए, जिसमें नक्सलियों के बीच के ही लोग शामिल हों। यानी ऐसे लोग इस यूनिट का हिस्सा बने जो कि नक्सलियों को करीब से जानते हों, क्योंकि ऐसे लोग ही उनके नेटवर्क को तोड़ सकते हैं। उन दिनों नक्सलियों का नेटवर्क इतना तगड़ा था कि बस्तर रीजन में के हर गली-मोहल्ले की खबर उन तक पहुंच जाा करती थी।

2008 में हुआ था गठन

अपने इस फैले हुए नेटवर्क की वजह से नक्सली बड़े से बड़े हमले करके वहां से भागने में सफल हो जाया करते थे। सुरक्षाबलों के लिए उन्हें पकड़ना बहुत मुश्किल होता था। इस वजह से सरकार ने डीआरजी यानी डिस्ट्रिक रिजर्व गार्ड का गठन किया गया। इसकी शुरूआत नारायणपुर से हुई। साल 2008 में जवानों की भर्ती की गई। डीआरजी में आखिरी बार भर्ती 2013 में नक्सल प्रभावित जिले सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर में हुई थी।

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इनकी होती है भर्ती

पुलिस की डीआरजी यूनिट में उन युवाओं की भर्ती होती है जो कि स्थानीय होते हैं। वे लोकल भाषा और भौगोलिक स्थिति से परिचित होते हैं। इसके अलावा नक्सलियों को भी डीआरजी में भर्ती किया जाता है, क्योंकि वे अपने पुराने साथियों की रणनीति को जानते हैं। वर्तमान समय की बात करें तो डीआरजी यूनिट में अभी करीब 2 हजार जवान हैं, जो कि लगातार जंगलों में माओवादियों का पता लगाने के लिए सर्च ऑपरेशन चलाते हैं।

डीआरजी कई एंटी नक्सल अभियानों को सफलतापूर्वक पूरा कर चुके हैं। डीआरजी के जवान नक्सलियों की गुरिल्ला लड़ाई का उन्हीं की भाषा में जवाब देते हैं। उन्हें जंगल के रास्तों का पता होता है। उन्हें नक्सलियों की आवाजाही, उनकी आदतें और काम करने के तरीकों के बारे में जानकारी होती है। इलाके में नक्सलियों की हेल्प करने वालों के बारे में भी उन्हें पता होता है। इसकी सहायता से वे नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन की प्लानिंग करते हैं जिसमें अधिकतर उनको सफलता हासिल होती है। यही वजह है कि उन्हें नक्सलियों का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है।

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