आखिर आरिफ मोहम्मद खान ही क्यों बनेंगे उपराष्ट्रपति ?

 

आखिर आरिफ मोहम्मद खान ही क्यों बनेंगे उपराष्ट्रपति ?

जगदीप धनखड़ के अचानक उपराष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद अब नए उपराष्ट्रपति की खोज को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं।अलग-अलग नामों के कयास लगाए जा रहे हैं,लेकिन बीजेपी का थिंक टैंक कुछ और सोच रहा है। बिहार,पश्चिम बंगाल उसके बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव होंगे। इन दिनों विपक्ष एक नेरेटिव पूरे देश में चला रहा है। खासतौर पर वक्फ बिल के बाद कि बीजेपी देश में मुस्लिम कौम को बेदखल करना चाहती है। पिछले दिनों पटना में वक्फ के खिलाफ अल्पसंख्यक नेताओं,संगठनों और लोगों का बड़ा जमावड़ा भी हुआ था। बिहार में इसी साल चुनाव भी प्रस्तावित है,और अघोषित रूप से अल्पसंख्यक बीजेपी से बागी हो गया है ऐसा माहौल बनाया भी जा रहा है।जाहिर है, बिहार,पश्चिम बंगाल ,उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की संख्या और समर्थन हार-जीत का कारण बन सकती है। लिहाजा देश भर के राजनीतिक पंडित अपने हिसाब से गुणा भाग करने में जुटे हैं। मीडिया में अलग-अलग सोर्स के हवाले से कई संभावित नाम की चर्चा है। इस बीच चुनावी राज्य बिहार से भी एक नाम की चर्चा जोरों पर है। यह कोई और नहीं बल्कि, बिहार के मौजूदा राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान हैं।चर्चा है कि बीजेपी के थिंकटैंक आरिफ मोहम्मद खान को उपराष्ट्रपति बनाने का फैसला कर सकती है।बीजेपी पर लगातार आरोप लगते रहे हैं कि वह लोकसभा और विधानसभा चुनावों में ना के बराबर मुस्लिमों को टिकट देती है। मौजूदा लोकसभा में भी बीजेपी के एक भी मुस्लिम सांसद नहीं हैं। यहां तक कि अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय भी किरण रिजिजू के पास है। उसी तरह बिहार में भी यह मंत्रालय बीएसपी से आयातित कर जेडीयू में लाए गए विधायक जमा खान को दिया गया है। उपराष्ट्रपति के पद पर आरिफ मोहम्मद खान को बिठाकर बीजेपी कहीं ना कहीं अपने ऊपर होने वाले इन हमलों का जवाब भी काफी हद तक दे सकती है।आरिफ मोहम्मद का चेहरा अगर उपराष्ट्रपति पद के लिए आगे किया जाता है तो उसपर तथाकथित सेक्युलर पार्टियों को भी मुहर लगाने की विवशता होगी। खासकर बिहार जैसे राज्य जहां इसी साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। यहां लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाइटेट चुनाव में अपनी सेक्युलर छवि बरकार रखने के लिए आरिफ मोहम्मद खान के नाम पर शायद ही खिलाफत करे। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि लालू और नीतीश दोनों से आरिफ मोहम्मद खान के व्यक्तिगत तौर पर भी बेहद अच्छे रिश्ते रहे हैं। लंबे समय से सक्रिय राजनीतिक जीवन से अलग रहने के बाद मोदी सरकार ने उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया था और फिर बिहार का राज्यपाल बनाया। शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए संसद से कानून बनाने के खिलाफ राजीव गांधी मंत्रीमंडल से इस्तीफे के साथ मुस्लिम कट्टरपंथ और तुष्टीकरण के खिलाफ वे अपने रूख पर लगातार कायम रहे। तीन तलाक से लेकर वक्फ कानून में संशोधन तक में आरिफ मोहम्मद खान ने मोदी सरकार के फैसले का तर्कों के साथ बचाव किया।आरिफ मोहम्मद खान के चेहरे पर विरोध करने का जोखिम पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कांग्रेस पार्टी भी शायद ही ले।बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान एक ऐसा चेहरा हैं जो विवादों से कोसो दूर हैं। बेहद विद्वान आरिफ मोहम्मद खान इस्लामिक कट्टरता से दूर भारतीय समाज संस्कृति को पेश करने वाले शख्स हैं। वह भारत में प्रोग्रेसिव सोच रखने वाले मुसलमानों का चेहरा हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के 11 साल के कार्यकाल को देखें तो उन्होंने खासकर इस्लाम से जुड़े उन्हीं फैसलों को छूआ है जो उसे प्रोग्रेसिस बनाती है। उदाहरण के तौर पर तीन तलाक हो, चाहे वक्फ संशोधन कानून इन तमाम मुद्दों पर आरिफ मोहम्मद खान ने खुलकर मोदी सरकार का साथ दिया है। साथ ही इन फैसलों को मुस्लिम समाज के लिए हितकारी बताते रहे हैं।माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ब्रिटेन और मालदीव के दौरे लौटने के बाद नए उपराष्ट्रपति के चयन लेकर फैसला हो सकता है।

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